मेरे पहले ब्लॉग "हम सब अजनबी हैं" को मिली आप सभी की सराहना के लिए मैं आपका आभारी हूँ। आपकी सराहना ने ही मुझे यह दूसरा ब्लॉग लिखने की हिम्मत दी है। भोलूराम की रामायण मेरे मित्र पंकज मिश्र के कलाकार भोलूराम के दिमाग की उपज है। मुझे इस तरह ब्लॉग लिखने की प्रेरणा मेरे मित्र पंकज मिश्र ने दी जिनका में आभारी हूँ। इसीलिए इस बार मेने उनका कलाकार मित्र भोलूराम उनसे उधर ले लिया।
भोलूराम की रामायण एक मानसिक द्वन्द है जो कहीं न कहीं हम सब में है।
एक शाम की बात है जब भोलूराम जी मेरे घर पर मिलने आये थे। उसदिन भोलूराम जी मुझे कुछ परेशां से दिखे। ऐसा लगा की उनके दिमाग में कुछ चल रहा है जो वो समझ ने की कोशिश कर रहे हैं। मैं उनकी परेशानी देख कर पूछ बैठा अरे भोलूराम जी इतना परेशान क्यों दिख रहे हैं। क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ, मेरा इतना कहना था की भोलूराम बोल पड़े हाँ । ऐसा लगा जैसे वह मेरे पास इसी समस्या को लेकर आये थे। मेरे पास अब कोई चारा नहीं था सो मुझे बोलना पड़ा की समस्या क्या है।
भोलूराम बोले की मैं बहुत दिन से सोच रहा हूँ की रामायण द्वापर युग में तो था जिसके पत्र भगवन राम थे। परन्तु मुझे आज भी न जाने क्यों लगता है की रामायण और भगवन राम आज भी हमारे इर्दगिर्द हैं। मैं ने भोलूराम जी से कहा की भाई आप अपनी बातें जरा विस्तार पूर्वक समझाएं की आप कहना क्या चाहते हैं। इस पर भोलूराम जी बोले की जैसे हर घर में किसी बच्चे का जन्म होता है। ठीक उसी प्रकार होता है जैसे भगवन राम का हुआ था। वैसे ही सभी बच्चे स्कूल जाते है जैसे भगवन राम गुरुकुल गए थे। आज भी बच्चे शिक्षा लेनें के लिए अपने माता पिता से दूर चले जाते हैं। फिर आपने अपने उदेश्यों के लिए नौकरी करने जैसे भगवन अपने गुरु के साथ वन में कुछ राक्ष्शों का वध करने गए थे। उस वक्त उनको दैत्यों और राक्षों को मारने का कार्यभार दिया था आज कार्यभार का स्वरुप बदल चूका है। कुछ दिनों में उनका विवाह हुआ और वो पिता और गुरे के आदेश से जन कल्याण के लिए चौदह वर्ष के वनवास पर चले गए। जहाँ उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
क्या आज के युग में हम नौकरी करने आपने परिवार को छोड़ कर नहीं जाते? राम का वनवास तो चौदह बरस का था परन्तु आज का व्यक्ति तो तीस चालीस बरस आपने घर परिवार वालों से दूर रहता है और शायद फिर कभी वापस नहीं जा पता। कारण जो भी हो।
रामायण में राम ने ताड़का, बाली, मेघनाथ, रावन आदि जैसे दैत्य रुपी कठिनाइयों का सामना किया था । कभी बाली वध के लिए छल करना पड़ा तो रावन वध के लिए विभीषण के साथ मिलकर राजनीति। जिसमें उन्हें सिग्रीव, हनुमान, जामवंत जैसे मित्रों का सहारा लेना पड़ा था।
हम भी आपने भाई बंधुओं से दूर जहाँ काम करते है तथा रहते है वहीँ के आपने उन नए साथियों के सहयोग से ही आपनी रोजमर्रा के दैत्य रुपी समस्याओं से लड़ते है और आगे बढ़ते हैं।
और इसी तरह हमारे भोलूराम जी कई और उदहारण देते जा रहे थे। मैं भी उनकी बातों में डूबता चला गया क्योंकी उनके इन बातों का मेरे पास कोई जवाब न था। मैं उनकी उलझन तो सुलझा न सका अलबत्ता खुद ही अब उनकी बातों में उलझ गया हूँ। उसदिन मैं ने जैसे तैसे भोलूराम जी की जिज्ञासा को शांत यह कह कर के किया की भाई भोलूराम जी इसीलिए तो टीवी पर आने वाले सभी साधू महात्मा यही तो कहते हैं की भगवन कहीं और नहीं हम में हैं। कहाँ भटकते हो आपने अन्दर ही भगवन को खोजो और इसतरह में ने भोलूराम जी को तो बहला कर विदा किया। परन्तु तब से आज तक में खुद यह सोचता हूँ की भोलूराम ने जो भी कहा उससे इंकार भी नहीं किया जाता। और इस बात पर खुद को बहला नहीं पा रहा हूँ।
आप से अनुरोध है की अगर आपको इसका जवाब मिले तो जरूर बताएं, क्योंकि इस रविवार को भोलूराम जी फिर मुझे से मिलेंगे और पूछेंगे तो उन्हें क्या जवाब दूंगा।