tag:blogger.com,1999:blog-87145019369004526572024-03-08T02:48:38.311-08:00अजनबी दुनियाDeepakhttp://www.blogger.com/profile/15537906940706475057noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-8714501936900452657.post-36650333613902369462011-06-09T09:10:00.000-07:002011-06-09T10:40:55.958-07:00एक चाणक्य की तलाश४ जून की रात १ बजे जो दिल्ली की राम लीला मैदान में हुआ वह निहायत ही अफसोसजनक एवं दुर्भाग्य पूर्ण था यह में भी कहता हूँ और टीवी चेन्नल पर आने वाले बहूत बड़े बड़े विद्वान एवं गुणी लोग भी कह गए।<br /><br />परन्तु अब लगता है की वह सब सिर्फ एक घटना थी जो टीवी चेन्नल वालों के लिए टी आर पी बढ़ाने वाला एक समाचार मात्र था। सत्ता के नशे में चूर सत्ताधारी पार्टी के लिए सत्ता की ताकत दिखा कर अपनी मनमानी करने का जबरन हक़ ले लेनेका तरीका, तो वहीँ विपक्छ के लिए सत्ता की सीधी के तरफ पहुँचाने के लिए पहला बहु प्रतिक्छित कदम बढाने का हाथ आया एक सुनेहरा मौका। जहाँ बाबा रामदेव के लिए असुनिस्चित एवं अनापेक्छित घटना तो आम जनता के लिए फिर से नेताओं के हाथो ठगे जाने के अलावा और कुछ नहीं था।<br /><br />कुछ दिनों में आम जनता के साथसाथ बाकि सब इसको एक एतिहासिक घटना की तरह भूल <span style="font-size:0;">जायेंगे। </span>क्योंकि भूलना यह हमारी परम्परा बन यह इसेऐसी अब कोई इसे घिनोनी aisi घटना हो सकती है तो आम आदमी की क्या बिसात। अब इसे कोई घिनोनी घटना कहे या एक क्रांति कोशिस क्या फरक पड़ता है।<br /><br />परन्तु यह सब मुझे ईसा से लगभग ३२५ वर्ष पूर्व के एक आचार्य की कहानी याद दिलाता है। वही साशन के कुव्यवस्था के खिलाफ, भ्रष्टाचार के खिलाफ एवं राष्ट्र के हित के लिए फिर एक आचार्य ने आवाज उठाई जैसे तब उठाई थी। वही साशन की दमनात्मक कोशिश भी हुई। आचार्य को तब भी वेश बदल कर छुपते छुपाते साशन की सेन्य शक्तियों से बच कर निकलना पडा था। परन्तु उस वक्त जो उस आचार्य ने किया था और देश की जनता को चन्द्रगुप्त नमक एक राजा दिया था। यह कहानी तो सब जानते हैं।<br />आचार्य चाणक्य के बारे में कौन नहीं जनता है। शायद अब फिर इस देश को उसी आचार्य की तलाश है। मेरी भी यही तलाश है। परन्तु लगता है हमें अभी और इंतजार करना होगा। न जाने और कितना इंतजार और नजाने कब तक।Deepakhttp://www.blogger.com/profile/15537906940706475057noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8714501936900452657.post-37016456428267987862010-04-16T07:53:00.000-07:002010-04-16T21:58:37.531-07:00भोलूराम की रामायण<p>मेरे पहले ब्लॉग "हम सब अजनबी हैं" को मिली आप सभी की सराहना के लिए मैं आपका आभारी हूँ। आपकी सराहना ने ही मुझे यह दूसरा ब्लॉग लिखने की हिम्मत दी है। भोलूराम की रामायण मेरे मित्र पंकज मिश्र के कलाकार भोलूराम के दिमाग की उपज है। मुझे इस तरह ब्लॉग लिखने की प्रेरणा मेरे मित्र पंकज मिश्र ने दी जिनका में आभारी हूँ। इसीलिए इस बार मेने उनका कलाकार मित्र भोलूराम उनसे उधर ले लिया। </p><p>भोलूराम की रामायण एक मानसिक द्वन्द है जो कहीं न कहीं हम सब में है।</p><p>एक शाम की बात है जब भोलूराम जी मेरे घर पर मिलने आये थे। उसदिन भोलूराम जी मुझे कुछ परेशां से दिखे। ऐसा लगा की उनके दिमाग में कुछ चल रहा है जो वो समझ ने की कोशिश कर रहे हैं। मैं उनकी परेशानी देख कर पूछ बैठा अरे भोलूराम जी इतना परेशान क्यों दिख रहे हैं। क्या मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ, मेरा इतना कहना था की भोलूराम बोल पड़े हाँ । ऐसा लगा जैसे वह मेरे पास इसी समस्या को लेकर आये थे। मेरे पास अब कोई चारा नहीं था सो मुझे बोलना पड़ा की समस्या क्या है। </p><p>भोलूराम बोले की मैं बहुत दिन से सोच रहा हूँ की रामायण द्वापर युग में तो था जिसके पत्र भगवन राम थे। परन्तु मुझे आज भी न जाने क्यों लगता है की रामायण और भगवन राम आज भी हमारे इर्दगिर्द हैं। मैं ने भोलूराम जी से कहा की भाई आप अपनी बातें जरा विस्तार पूर्वक समझाएं की आप कहना क्या चाहते हैं। इस पर भोलूराम जी बोले की जैसे हर घर में किसी बच्चे का जन्म होता है। ठीक उसी प्रकार होता है जैसे भगवन राम का हुआ था। वैसे ही सभी बच्चे स्कूल जाते है जैसे भगवन राम गुरुकुल गए थे। आज भी बच्चे शिक्षा लेनें के लिए अपने माता पिता से दूर चले जाते हैं। फिर आपने अपने उदेश्यों के लिए नौकरी करने जैसे भगवन अपने गुरु के साथ वन में कुछ राक्ष्शों का वध करने गए थे। उस वक्त उनको दैत्यों और राक्षों को मारने का कार्यभार दिया था आज कार्यभार का स्वरुप बदल चूका है। कुछ दिनों में उनका विवाह हुआ और वो पिता और गुरे के आदेश से जन कल्याण के लिए चौदह वर्ष के वनवास पर चले गए। जहाँ उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। </p><p>क्या आज के युग में हम नौकरी करने आपने परिवार को छोड़ कर नहीं जाते? राम का वनवास तो चौदह बरस का था परन्तु आज का व्यक्ति तो तीस चालीस बरस आपने घर परिवार वालों से दूर रहता है और शायद फिर कभी वापस नहीं जा पता। कारण जो भी हो। </p><p>रामायण में राम ने ताड़का, बाली, मेघनाथ, रावन आदि जैसे दैत्य रुपी कठिनाइयों का सामना किया था । कभी बाली वध के लिए छल करना पड़ा तो रावन वध के लिए विभीषण के साथ मिलकर राजनीति। जिसमें उन्हें सिग्रीव, हनुमान, जामवंत जैसे मित्रों का सहारा लेना पड़ा था। </p><p>हम भी आपने भाई बंधुओं से दूर जहाँ काम करते है तथा रहते है वहीँ के आपने उन नए साथियों के सहयोग से ही आपनी रोजमर्रा के दैत्य रुपी समस्याओं से लड़ते है और आगे बढ़ते हैं। </p><p>और इसी तरह हमारे भोलूराम जी कई और उदहारण देते जा रहे थे। मैं भी उनकी बातों में डूबता चला गया क्योंकी उनके इन बातों का मेरे पास कोई जवाब न था। मैं उनकी उलझन तो सुलझा न सका अलबत्ता खुद ही अब उनकी बातों में उलझ गया हूँ। उसदिन मैं ने जैसे तैसे भोलूराम जी की जिज्ञासा को शांत यह कह कर के किया की भाई भोलूराम जी इसीलिए तो टीवी पर आने वाले सभी साधू महात्मा यही तो कहते हैं की भगवन कहीं और नहीं हम में हैं। कहाँ भटकते हो आपने अन्दर ही भगवन को खोजो और इसतरह में ने भोलूराम जी को तो बहला कर विदा किया। परन्तु तब से आज तक में खुद यह सोचता हूँ की भोलूराम ने जो भी कहा उससे इंकार भी नहीं किया जाता। और इस बात पर खुद को बहला नहीं पा रहा हूँ। </p><p>आप से अनुरोध है की अगर आपको इसका जवाब मिले तो जरूर बताएं, क्योंकि इस रविवार को भोलूराम जी फिर मुझे से मिलेंगे और पूछेंगे तो उन्हें क्या जवाब दूंगा। </p><p> </p><p> </p><p><br /> </p><p><br /> </p><p><span class=""></span> </p><br /><p></p>Deepakhttp://www.blogger.com/profile/15537906940706475057noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-8714501936900452657.post-55485511768966966392010-04-06T02:54:00.001-07:002010-04-10T21:13:13.395-07:00हम सब अजनबी हैंमैं एक अजनबी आज यह बताना चाहता हूँ की हम सब अजनबी हैं। आप सोच रहे होंगे की ये आदमी क्या बोल रहा है। आप से अनुराध है की नीचे लिखे इन पक्तियों में छुपे कुछ हकीकत को जानने के बाद शायद आप भी ऐसा ही मानने लगें।<br /><br />यह मेरी पहली एक छोटी सी कोशिश है, उम्मीद है आप पसंद करेंगे।<br /><br />१। पिता पुत्र से अजनबी है। पुत्र कितना भी कामयाब हो जाए पर पिता हमेशा यही सोचते हैं की अगर यह मेरी बात मंलेता तो आज और आगे होता।<br /><br />२। पुत्र पिता से अजनबी है। क्योंकि वह हमेशा यह मानता हेई की अगर उस समाये पिता जी ने मेरी बात समझ ली होती तो आज में कहीं और होता।<br /><br />३। इसके आगे जो सम्बन्ध दुनिया में सबसे करीबी है। वहां तो बात और गड़बड़ है।<br />पति पत्नी से वो भी शादी से १ साल बाद से जीवन के अंत तक यही सोचता है और शायद कबुही कभी आपने करीबी लोगों में बातें भी करता है । की यार न जाने में कुछ भी करलूं मेरी बीबी को मेरी ही बात समझ में नहीं आती। वहीँ पत्नी को आपने पति से साडी उम्र पति के कुछ आदतों को लेकर शिकायत रहती ही है जो वह अपनी सहेलियों के बीच में बोल पड़ती हेई। जैसे उनकी ऑफिस से आकर घर में कपडे कहीं भी रखने की आदत। इन्हें तो देखो बस मेरे ही हाथ का खाना पसंद नहीं आता। जब देखो दुसरे की ही तारीफ करते रहते हैं, में तो शादी से लेकर आज तक इनकी तारीफ सुनने को तरस गयी।<br /><br />४। प्रेमिका को प्रेमी की देर से आने की आदत पसंद नहीं आती। प्रेमी को प्रेमिका का रोज कोफ्फे हाउस में जाने से मन करना नहीं भाता ।<br /><br />५। भाई को भाई का अपनी जिंदगी के किसी पल में दखल पसंद नहीं आता।<br /><br />६। भाभी नन्द में नहीं बनती और न जाने कितने किस्से हैं।<br /><br />जैसे अधिकारी अपने कर्मचारी से परेशान हैं और कर्मचारी अधिकारी से।<br /><br />में इन बातों से सिर्फ यह बतलाना चाहता की हम जिनके सब से करीब हैं जब हम उनकी पसंद न पसंद से ही अनजान हैं या खुद को उस हिसाब से ढालने में आसमर्थ हैं। इसका मतलब हम खुद से अपनों से अजनबी नहीं तो और क्या हैं?<br /><span class=""></span><br /><span class="">जरा सोचिये................</span>Deepakhttp://www.blogger.com/profile/15537906940706475057noreply@blogger.com17