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Thursday, June 9, 2011

एक चाणक्य की तलाश

४ जून की रात १ बजे जो दिल्ली की राम लीला मैदान में हुआ वह निहायत ही अफसोसजनक एवं दुर्भाग्य पूर्ण था यह में भी कहता हूँ और टीवी चेन्नल पर आने वाले बहूत बड़े बड़े विद्वान एवं गुणी लोग भी कह गए।

परन्तु अब लगता है की वह सब सिर्फ एक घटना थी जो टीवी चेन्नल वालों के लिए टी आर पी बढ़ाने वाला एक समाचार मात्र था। सत्ता के नशे में चूर सत्ताधारी पार्टी के लिए सत्ता की ताकत दिखा कर अपनी मनमानी करने का जबरन हक़ ले लेनेका तरीका, तो वहीँ विपक्छ के लिए सत्ता की सीधी के तरफ पहुँचाने के लिए पहला बहु प्रतिक्छित कदम बढाने का हाथ आया एक सुनेहरा मौका। जहाँ बाबा रामदेव के लिए असुनिस्चित एवं अनापेक्छित घटना तो आम जनता के लिए फिर से नेताओं के हाथो ठगे जाने के अलावा और कुछ नहीं था।

कुछ दिनों में आम जनता के साथसाथ बाकि सब इसको एक एतिहासिक घटना की तरह भूल जायेंगे। क्योंकि भूलना यह हमारी परम्परा बन यह इसेऐसी अब कोई इसे घिनोनी aisi घटना हो सकती है तो आम आदमी की क्या बिसात। अब इसे कोई घिनोनी घटना कहे या एक क्रांति कोशिस क्या फरक पड़ता है।

परन्तु यह सब मुझे ईसा से लगभग ३२५ वर्ष पूर्व के एक आचार्य की कहानी याद दिलाता है। वही साशन के कुव्यवस्था के खिलाफ, भ्रष्टाचार के खिलाफ एवं राष्ट्र के हित के लिए फिर एक आचार्य ने आवाज उठाई जैसे तब उठाई थी। वही साशन की दमनात्मक कोशिश भी हुई। आचार्य को तब भी वेश बदल कर छुपते छुपाते साशन की सेन्य शक्तियों से बच कर निकलना पडा था। परन्तु उस वक्त जो उस आचार्य ने किया था और देश की जनता को चन्द्रगुप्त नमक एक राजा दिया था। यह कहानी तो सब जानते हैं।
आचार्य चाणक्य के बारे में कौन नहीं जनता है। शायद अब फिर इस देश को उसी आचार्य की तलाश है। मेरी भी यही तलाश है। परन्तु लगता है हमें अभी और इंतजार करना होगा। न जाने और कितना इंतजार और नजाने कब तक।